गाँव मे एक रोज़ एक बैठक होती है, मौजूद होते है गाँव की सारे लोग और विभिन्न प्रजातियां, पंचों की कुर्सियों में बैठे है इंसान, और बाक़ी विभिन्न जानवर बैठे है ज़मीन पर। अनाम आरोप उठा है गिद्ध पे, ‘कहते है की गिद्ध, खूंखार है, इंतज़ार करता है भूखे के मरने का, क्या ये कुछ और नहीं खा सकता ! अब क्यूंकि हर मरे को खाया है गिद्ध ने, तो सब हुंकार भरते है कि ‘ समाज मे ऐसा तो नहीं चलेगा |’ पंचो का आदेश आता है कि गिद्ध अपने खाने का बदलाव करे | चील, बाज़, गिद्ध सब कहने की कोशिश तो करते ही कि ये खाना उनकी प्रकृति है पर इंसान अपने आदेश में कठोर खड़ा रहता है| गिद्ध अनसुना होकर बस उड़ जाता है |
शाम को कौवे आपस में बैठते है वह बात कृति है की गिद्ध चला जाये तो सारा मास ख़ाना इन सबको मिल जाएगा, और असमान मैं भी इनको कोई ख़तरा नहीं रहेगा। वह मौक़े का फ़ायदा देख गाँव के सब प्रजातिओं के नेताओ को बेहकाता है, और सबसे बड़े नेता इंसान के पास जाकर क़हत है कि गिद्ध दिखने में तो आम सा है पर पंख खोले तो इंसान से भी बड़ा हो जाता है , गिद्ध के पंजों में इतनी ताकत है कि ये तो इंसान का बच्चा भी उठा ले जाये | यही बात धीरे धीरे पूरे समाज मैं फेल जाती है।
गिद्ध अब जहां भी जाये सबकी नजरें आसमान में उसकी तरफ होती है, और उसके पीछे सब खुसपुसाते है, कही पर बेठ जाये तो कौवें भीड़ इकट्ठा कर चिल्ला – चिल्ला गिद्ध को वहाँ से भगा देते | अब गिद्ध जोकि नजरों और कानों से तेज़ आसमान से उड़ता उड़ता सब सुनता और देखता कि लोग उसके बारे में बाते बना रहे है, इस कारण अब कोई उसे पसंद नहीं कर रहा |
खबर उड़ती है कि ‘’कल एक चील को कौवो की भीड़ में मारा गया और साजिश ये भी है कि इंसान लाशों में ज़हर मिला रहा है। जिस कारण गिद्धों की सांख्य कम होती जा रही है।”
कुछ दिनों में जो भी गिद्ध बचे थे वे सब अपना परिवार लेके गाँव छोड़कर जाने लगे | गिद्ध के साथ ये होता देख बाकी मांस खाने वाले पक्षी जैसे शिक्रा, गरुड़, बाज़ और तो और कुछ चील भी उड़ चले गये |
कुछ साल ही बीते होंगे कि संसार में धीरे – धीरे अन्य नई बीमारियाँ आना शुरू हो गई, जगह-जगह सड़ी लाश और किलोमीटर दूर तक उसकी बदबू। हवा-पानी सब प्रदूषित होने लगा, जानवर और इंसान कमज़ोर होने लगे।
बैठक हुई तो चर्चा हुई कि क्या हो रहा है ? क्या किया जाये ? ये जगह – जगह लाश कैसे हटाई जाये ? कौवा भी पीछे हट गया की इतना मांस तो मुझसे भी नहीं खाया जाता | एक बूढा बन्दर इंसान के सामने कुछ किताबें लाया और बोला कि ‘’थे तो वो गिद्ध जो ये मरे हुए जानवरों का मांस सड़ने से पहले ही खत्म कर दिया करते थे | वो कुछ कहते थोड़ी थे |” वो बोले डांटते हुए की ‘’यह समाज एक पारिस्थितिक चक्र है । इस संसार के चक्र में सभी लोगों और जानवरों का एक समान महत्व होता है, कोई एक कड़ी निकली तो ये संतुलन बिगड़ जाता है | अब ये सुझाव यह है कि मिलकर गिद्ध को ढूंढा जाये | वापस समाज में जोड़ा जाये |’’
जो ढूंढ़ने निकले उनको पता चला की गिद्ध और बाज़ सब इस जगह से बहुत दूर चले गए | अब बस संसार से मानो बस विलुप्त ही हो गये हैं | जो कुछ गिनती के बचे है वो सबसे दूर अकेले पहाड़ों की चोटियों पे रहते है | लोगो ने कोशिश तो बहुत की उन तक पहुँचने की उनको बुलाने की पर गिद्ध तक पहोच ना सके। एसा लगता जैसे गिद्ध का विश्वास अब खत्म है अब वो बस दूर बैठे सबको देखते और अपने ख़त्म हो जाने के दिन गिनते |